शहंशाह स्वामी रामतीर्थ—संन्यास से पूर्व स्वामी रामतीर्थ का नाम गोस्वामी तीर्थ राम था। इनका जन्म 22 अक्टूबर, 1873 को तत्कालीन पंजाब प्रांत के जिला गुजरांवाला के ग्राम मुरारीवाला में हुआ था, जो इस समय पाकिस्तान में है। इनके पिता का नाम था पंडित हीरालाल और माता का निहालदेई। पंडित हीरालाल की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। उनके घर का खर्च धार्मिक संस्कारों (कर्मकांड) और खेती से उनके घर का खर्च चलता था। लेकिन तीर्थराम के जन्म के कुछ दिनों बाद ही उनकी माता का देहांत हो गया। इनका लालन-पालन किया इनके बड़े भाई गोंसाई गुरुदासमल और उनकी वृद्धा चाची ने। परंतु यहां कुछ लोगों का मानना है कि इस काम में उनकी बुआ श्रीमती धर्मकौर की महत्वपूर्ण भूमिका थी।
गोस्वामी तीर्थराम का संबंध कुछ लोग ‘रामचरित मानस’ के रचनाकार संत तुलसीदास जी से मानते हैं, जबकि कुछ के विचार से इसी नाम के एक और संत थे, जिनकी प्रसिद्धि उत्तरी-पश्चिमी सीमा पंजाब प्रांत में थी, जिनकी गद्दी ‘चित्रल’ के पास स्थित ‘स्वाट’ में थी। यहां, अपने पूर्वजों की गद्दी पर तीर्थराम अपने पिता के साथ समय-समय पर माथा टेकने जाया करते थे।
बालक तीर्थराम जब 5 वर्ष के हुए, तो इन्हें मुरारीवाला प्राइमरी स्कूल पढ़ने के लिए डाल दिया। यहां उनके शिक्षक को, जो मुस्लिम थे, इस बात का संकेत मिल गया था कि उनके पास पढ़ने वाला साधारण-सा दिखने वाला बालक अतिविशिष्ट व्यक्तित्व का धनी है। यह भविष्य में विशिष्ट व्यक्तित्व का धनी बनेगा।
सभी जानते हैं कि उस समय समाज में बाल-विवाह की प्रथा थी। इसके अनुसार कम आयु में ही बच्चों की शादी कर दी जाती थी। तीर्थराम के साथ भी ऐसा ही हुआ। उनका विवाह मुरारीवाला से 6-7 कोस की दूरी पर स्थित ‘विरोके’ ग्राम के एक ब्राह्मण परिवार की बेटी ‘शिवो देवी’ के साथ कर दिया गया।
गांव के स्कूल में शिक्षा पूर्ण हुई तो आगे की शिक्षा के लिए पिता ने तीर्थराम को गुजरांवाला के हाई स्कूल में भेज दिया। यहां उनका संपर्क भगत धन्ना राम से हुआ, जो तीर्थराम के पिता के मित्र थे। धन्ना जी की ख्याति लोगों में एक ऐसे सिद्ध पुरुष के रूप में थी, जिसके द्वारा कही गई बात पूरी हो जाती थी। इसीलिए लोग उन्हें ‘रबजी’ इस नाम से पुकारते थे।
तीर्थराम को भगत जी बाकी लोगों से थोड़ा भिन्न लगे। उनका आचरण संसारी व्यक्तियों का-सा नहीं था। इसलिए उन्होंने भक्त जी को अपना मार्गदर्शक गुरु स्वीकार कर लिया।
मार्च सन् 1888 में तीर्थ राम ने मैट्रिक की परीक्षा पास की। पूरे प्रांत में उनका स्थान 38वां था। उन्हें छात्रवृत्ति नहीं मिली। उनके पिता नहीं चाहते थे कि उनका पुत्र अब आगे पढ़े। वह चाहते थे कि नौकरी करके वह उनका साथ दे। परंतु तीर्थराम अभी आगे और पढ़ना चाहते थे।
मौत को मौत आ न जाएगी।
कस्द करके जो मेरा आएगी।
मुझको काटे कहां है वो तलवार?
दाग दे मुझको वह कहां है नार?
बाद में ताब कब सुखाने की?
आब में ताब कब गलाने की?
इस रूप में पहाड़ों से उतरा, मुरझाते पौधों को ताजा किया,
फूलों को हंसाया, बुलबुल को रुलाया, दरवाजों को खटखटाया,
सोतों को जगाया, किसी का आंसू पोंछा, किसी का घूंघट उठाया,
इसको छेड़, उसको छेड़, तुझको छेड़!
वह गया! वह गया!! वह गया!!!
न कुछ हाथ, न किसी के हाथ आया।